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देख कर मेरा नसीब मेरी तक़दीर रोने लगी

देख कर मेरा नसीब मेरी तक़दीर रोने लगी,
लहू के अल्फाज़ देख कर तहरीर रोने लगी,
हिज्र में दीवाने की हालत कुछ ऐसी हुई,
सूरत को देख कर खुद तस्वीर रोने लगी..!!

हम गए थे उनको मनाने के लिए वो खफा,
अच्छे लगे तो हमने खफा ही रहने दिया..!!

पर्दा गिरते ही खत्म हो जाते हैं तमाशे सारे,
खूब रोते हैं फिर औरों को हँसाने वाले..

शेर-ओ-शायरी तो दिल बहलाने का एक जरिया है साहिब,
लफ्ज कागज पर उतरने से, महबूब लौटा नहीं करते….!!

जान-ए-तन्हा पे गुजर जायें हजारो सदमें,
आँख से अश्क रवाँ हों ये ज़रूरी तो नहीं..!!

ना रख किसी से भी मोहब्बत की उम्मीद खुदा क़सम,
लोग ख़ूबसूरत तो बहुत हैं वफ़ादार नहीं..