कफ़न की ख़ामोशी को शमसान क्या जाने,
महकते हुए चमन को वीरान क्या जाने,
क्यों बरसती है ये बदनसीब आखें,
इन आंसुओ की कीमत रेगिस्तान क्या जाने.
अजीब था उनका अलविदा कहना,
सुना कुछ नहीं और कहा भी कुछ नहीं,
बर्बाद हुवे उनकी मोहब्बत में,
की लुटा कुछ नहीं और बचा भी कुछ नहीँ..!!
आग लगाना मेरी फितरत में नही है,
मेरी सादगी से लोग जलें तो मेरा क्या कसूर..!!
हम ज्यादा हँसते नहीं आज–कल दोस्तों
अपनी बदनसीबी से डर लगता है!
मुस्कराने से कहीं उन्हें तकलीफ न हो
बेवफा दर्द-ए-दिल कहाँ समझता है..!!
अगर रखते हैं रिश्ते तो निभाते हैं उम्र भर
हम नहीं बदलते रिश्ते लिबासो की तरह..!!
सुना है तुम्हारी एक निगाह से कत्ल होते हैं लोग,
एक नज़र हमको भी देख लो ज़िन्दगी अच्छी नहीं लगती..!!