सुरभि खो जाती है जैसे सूखे गुलाबो से,
कुछ यूँ ही विलीन हुये हम तेरे ख्वाबो से..
जीत किसके लिए, हार किसके लिए,
ज़िंदगी भर ये तकरार किसके लिए,
जो भी आया है वो जायेगा एक दिन,
फिर ये इतना अहंकार किसके लिए..!!
हम भी फूलों की तरह कितने बेबस हैं ,
कभी किस्मत से टूट जाते हैं कभी लोग तोड़ जाते हैं..!!
ज़मीं पर रह कर आसमां को छूने की फितरत है मेरी,
पर गिरा कर किसी को ऊपर उठने का शौक़ नहीं मुझे..!!
बेशक तु अपने महफिल मे मुझे बदनाम करती है पर तुझे खबर नहीं है,
वोह लोग भी मेरा पैर छूते हैं जिन्हें तु सलाम करती है।
सजदों मे गुज़ार दू अपनी सारी जिन्दगी यारो,
एक बार वो कह दे के मुझे दुआओं से माँग लो..!!