किस क़दर मासूम सा लहजा था उसका 'दोस्त',
धीरे से जान कह कर बे-जान कर गए...!
ज़िंदगी है नादान इसलिए चुप हूँ,
दर्द ही दर्द सुबह शाम इसलिए चुप हूँ,
कह दू ज़माने से दास्तानं अपनी,
उसमे आ गया तेरा नाम इसलिए चुप हूँ..!!
आँखों के इशारे समझ नही पाते,
होंठो से दिल की बात कह नही पाते,
अपनी बेबसी हम किस तरह कहे,
कोई है जिसके बिना हम रह नही पाते..
उल्फत का अक्सर यही दस्तूर होता है!
जिसे चाहो वही अपने से दूर होता है!
दिल टूटकर बिखरता है इस कदर!
जैसे कोई कांच का खिलौना चूर-चूर होता है!
आप होते जो मेरे साथ तो अच्छा होता,
बात बन जाती अगर बात तो अच्छा होता,
सबने माँगा है मुझसे मुहब्बत का जवाब,
आप करते जो सवालात तो अच्छा होता।
ज़िंदगी में उस का दुलार काफ़ी है,
सर पर उस का हाथ काफ़ी है,
दूर हो या पास.. क्या फ़र्क पड़ता है,
माँ का तो बस एहसास ही काफ़ी है..