शेर-ओ-शायरी तो दिल बहलाने का एक जरिया है साहिब,
लफ्ज कागज पर उतरने से, महबूब लौटा नहीं करते….!!
वो कहते है इसे हाल-ए-दिल मेरा उन्हें क्या पता,
ये सिर्फ़ एक उनकी आदत नही मेरी ज़िंदगी मेरी इबादत है ये.
तुम मेरी ज़िंदगी में शामिल हो ऐसे,
मंदिर के दरवाज़े पर मन्नत के धागे हों जैसे।
कलम चलती है तो दिल की आवाज लिखता हूँ,
गम और जुदाई के अंदाज़-ए-बयां लिखता हूँ,
रुकते नहीं हैं मेरी आँखों से आंसू,
मैं जब भी उसकी याद में अल्फाज़ लिखता हूँ..!!
अभी उनकी मोहब्बत के कुछ निशान बाकी है,
नाम तो लब्ब पर हैं पर जान बाकी हैं,
क्या हुआ अगर वो देख कर अपना मूह फेर लेते है,
ये तस्सल्ली तो हैं की उन्हे हमारी पहचान बाकी हैं..!!
आरजू ये नही की गम का तूफान टल जाए,
फिकर तो ये है आपका दिल ना बदल जाए,
कभी मुझको अगर भूलना चाहो तो,
दर्द इतना देना की मेरा दम निकल जाए.