लगता है अपना ग़म मुझसे छुपाने की हिदायत
सिर्फ़-अो-सिर्फ़ उन्होंने अपनी ज़बाँ को ही दी थी,
या के मैं ये कहू्ँ की ख़ुद अपनी ही निगाहों पर
मेरे हुज़ूर का, ज़रा भी इख़्तियार रहता ही नहीं है
- अजय दत्ता
है ग़मों का ख़ौफ़ तो ज़रा भी ना हमें
ये जुमला कहते हुए, अक्सर कुछ दोस्त मेरे,
दर्द-अो-ग़म न मिलने की दुआ करने
मेरे साथ ही सीढ़ियाँ मस्जिद की चढ़ जातें हैं
- अजय दत्ता
कम से कम इन चराग़ों से तो पूछ लूँ की
आज इनका दिल, जलने का है भी या नहीं,
क्या इक मैं काफ़ी नहीं जो न चाहते हुए
दिल ही दिल में जाने कब से जले जा रहा हूँ
- अजय दत्ता
टूटी कलम थी? सियाही ख़त्म थी? या
इस के पन्नों को समझ के भरा तूने भुला दिया?
वजह कोई वाजिब ख़ुदा बता जो तूने
मेरी किताब-ए-तक़दीर को यूँ कोरा बना दिया..
- अजय दत्ता
वो चाहते हैं की मैं उनके लिए
उनकी मेज़ पे पड़ी, अपनी तस्वीर-सी हो जाऊँ,
वो करते रहें मुझ पे सौ सितम
अौर फिर भी मैं बस उन्हें मुस्कुराती नज़र आऊँ
- अजय दत्ता
मैनें सुना था, जो है तुम्हारा, वो गर जाए, तो
पास तुम्हारे, हर हाल में, लौट के ज़रूर आएगा,
बस इक इसी यकीं पे, आज तुम्हारे जाने पर
रुक जाने की, न मैं ज़िद्द, न ही इल्तिजा करूँगा
- अजय दत्ता