जिस पल अपने अंदर के उस
मासूम तिफ़्ल को भुला के, बड़े हो जाओगे,
बाग़-सी ज़िन्दगी को उस पल
बयाबान-सा देखने का नज़रिया पा जाओगे
- अजय दत्ता
नाज़िरीन ख़ुदा है
मेरी शिद्दत-ए-इबादत का,
ऐ दुनिया वालों ये
नज़ारा तुम्हारे लिए बना नहीं है
- अजय दत्ता
सच्चे दिल से तुझ से की गई
हर गुफ़्तुगू ऐ ख़ुदा, रुलाती है,
शायद इसलिए ही ये दुनिया
उस गुफ़्तुगू को दुआ बुलाती है
- अजय दत्ता
यक़ीनन तुम तो ग़लती से
इश़्क के मंदिर में चले आए हो,
तुम तो हासिल का ख़्याल
ज़हन-अो-दिल में भर के लाए हो
देखो, अभी तुम तैयार नहीं
इश़्क समझ लो अौर निभा सको,
आना जब बना लो मन की
बस अब ख़ुद को लुटाने आए हो
- अजय दत्ता
मेरी इन साँसों के आने-जाने को भी
अब से तुम मेरा इज़हार-ए-इश़्क ही कहना,
मैं नहीं चाहता की अब एक पल भी
मेरी ज़िन्दगी का, फ़ुज़ूल, बे-मा'नी कहा जाए
- अजय दत्ता
जो है जहां का
वहीं पे वो शाद रहेगा,
हो काँटों में क्यूँ न बे-शक
फूल तो वहीं पे आबाद रहेगा
- अजय दत्ता