हाथ ज़ख़्मी हुए तो कुछ अपनी ही ख़्ता थी...!
लकीरों को मिटाना चाहा किसी को पाने के लिए....!
देखते हैं और कितनी साँसें बेवफा निकलेंगी मेरी
उससे जुदा होकर मरने की कसम खाई थी
मेरी मोहब्बत बेज़ूबा होती रही,
दिल की धड़कने अपना वजूद खोती रही,
कोई नही आया मेरे दुख में करीब,
एक बारिश थी जो मेरे साथ रोती रही
कौन कहता है कि तेरी मोहब्बत में मुझे कुछ ना मिला,
रातों की नींद गई और रोने का वक़्त मिला !!
आँसुओं को पलकों पे लाया ना कीजिए,
दिल की बातें हर किसी को बताया ना कीजिए,
लोग मुट्ठी में नमक लिए फिरते हैं
अपने हर जख्म दिखाया ना कीजिए
ना दिन का पता ना रात का,
एक जवाब दे रब मेरी बात का,
कितने दिन बीत गये उस से बिछड़े हुवे,
ये बता दे कौन सा दिन रखा हैं
हमारी मुलाकात का...