वो आये और हमे कहने लगे चलो एक बार,
आज फिर से महफ़िल सजायेंगे तुम्हारे लिए।
"साहित्य" इंदौर
करके याद उसको आज मैं रोना चाहता हूँ।
आजकी महफ़िल से विदा होकर सोना चाहता हूँ।
"साहित्य" इंदौर
भले ही कटी है मुफलिसी में ज़िन्दगी मेरी,
मगर देख तेरी महफ़िल को तुझपे तरस आता है।
जब छोड़ा था तूने मुझे गरीब कहकर,
अब देख तेरी हालत को सावन बरस जाता है।।
"साहित्य" इंदौर