काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था खेलने की मस्ती थी ये दिल भी आवारा था कहाँ आ गये हम इस समझदारी के दलदल में वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था..
मुझे रिश्तो की लम्बी कतारों से क्या मतलब... कोई दिल से हो मेरा तो एक शख्स ही काफी है ।