इज़हार-ए-मोहब्बत लफ़्ज़ों में करना ज़रूरी तो नहीं,
आँखों से कहना और दिल से समझना कम तो नहीं..!!
"समय, सत्ता, संपत्ति और शरीर चाहे साथ दे ना दे लेकिन...
"स्वभाव, समझदारी और सच्चे संबंध हमेशा साथ देते हैं!
मिलना इतिफाक था बिछड़ना नसीब था,
वो इतना दूर चला गया जितना क़रीब था,
बस्ती क सारे लोग आतिश परस्त थे,
जलता रहा मेरा घर ओर समंदर क़रीब था!
इज़हार-ए-मोहब्बत लफ़्ज़ों में करना ज़रूरी तो नहीं,
आँखों से कहना और दिल से समझना कम तो नहीं..!!
वो जो सर झुकाए बैठे हैं,
हमारा दिल चुराए बैठे हैं,
हमने कहा हमारा दिल हमे लौटा दो,
तो बोले हम हाथों में मेहदी लगाए बैठे हैं.
इतना प्यार देकर गयी हो हर घड़ी याद आएगा,
दिल से दिल का रिश्ता ये कैसे दिल से मिटाया जाएगा,
हर घड़ी हम करते हैं जिसका इंतेज़ार आने का,
खुदा ज़रूर हमें उनसे एक ना एक दिन मिलाएगा.
आज वो फिर हमें याद आ रहे है,
रह रहकर हमें सता रहे है,
कहते थे हमेशा हसते रहना तुम
और खुद ही अपनी याद मे हमें रुला रहे है..