क्या सूनाओ तेरे नूर मे ए ग़ालिब..
के सूरज को कभी दिये की ज़रूरत नही.
किसी का क्या जो क़दमों पर जबीं-ए-बंदगी रख दी,
हमारी चीज़ थी हमने जहां जानी वहां रख दी,
जो दिल माँगा तो वो बोले ठहरो याद करने दो,
ज़रा सी चीज़ थी हमने जाने कहाँ रख दी।
सुना है तुमने लाखों
की किस्मत बनाई है,
देख तो सही मेरी आर्जी
कहाँ छिपाई है!!
ये आलम शौक़ का देखा न जाये,
वो बुत है या ख़ुदा देखा न जाये,
ये किन नज़रों से तुम ने आज देखा,
कि तेरा देखना देखा ना जाये..!!
तमन्ना करते हो जिन खुशियों की,
दुआ है वह खुशिया आपके कदमो मे हो,
खुदा आपको वह सब हक़ीक़त मे दे,
जो कुछ आपके सपनो में हो..
इश्क़ का खेल बहुत ही अजीब हो गया है
इंसा दिल के बहुत करीब हो गया है
भर तो ली है झोली उन सब ने सिक्कों से
मगर, चाहत के मुकाबले बहुत गरीब हो गया है
क्या सूनाओ तेरे नूर मे ए ग़ालिब..
के सूरज को कभी दिये की ज़रूरत नही.