दोनों जहान तेरी मोहब्बत में

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में...

|

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के,
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़र के.

More from Faiz Ahmed Faiz

अब अपना इकतियार है चाहे

अब अपना इकतियार है चाहे जहाँ चलें
रहबार से अपनी राह जुड़ा कर चुके हैं हम

आप की याद आती रही रात भर

आप की याद आती रही रात भर,
चाँदनी दिल दुखती रही रात भर!

लब पे तेरे इक़रार-ए-मोहब्बत शेर ग़ज़ल का लगता है

लब पे तेरे इक़रार-ए-मोहब्बत शेर ग़ज़ल का लगता है,
शर्म से चेहरा लाल गुलाबी फूल कमल का लगता है.

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के,
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़र के.