ज़िंदगी गुज़री यहा बड़ी नादानी में,
घर बनाते रहे हम बहते हुए पानी में..!!
हर जगह हर गली मंजिलें ना मिले,
यूं ही साँसों में सांस लिए सेहरा मेरे रूबरू बंजारा मैं क्या करूं
हर मर्ज़ का इलाज नहीं दवाखाने में
कुछ दर्द चले जाते है सिर्फ मुस्कुराने में...!!!
ना रख किसी से भी मोहब्बत की उम्मीद खुदा क़सम,
लोग ख़ूबसूरत तो बहुत हैं वफ़ादार नहीं..
सुरभि खो जाती है जैसे सूखे गुलाबो से,
कुछ यूँ ही विलीन हुये हम तेरे ख्वाबो से..
आख़िर और क्या चाहती हैं ये गर्दिश-ए-आयाम,
हम तो अपना घर भूल गये उनकी गली भूल गये!