क्या सूनाओ तेरे नूर मे ए ग़ालिब..
के सूरज को कभी दिये की ज़रूरत नही.
मत चाहो इतना किसी को की बाद में रोना पड़े क्योकि मेरे दोस्त,
ये दुनिया दिल से नहीं जरुरत से प्यार करती हैं..!!
मैं मर भी जाऊ, तो उसे ख़बर भी ना होने देना..
मशरूफ़ सा शख्स है कही उसका वक़्त बर्बाद ना हो जाये..!!
राहे यूही गुजर जाएँगी ए ग़ालिब तेरी याद मे,
अब बस तू ये बता की कैसे जिए हम इस बहाल ए-ज़िंदगी…
दरख़्त ऐ नीम हूँ, मेरे नाम से घबराहट तो होगी,
छांव ठंडी ही दूँगा, बेशक पत्तों में कड़वाहट तो होगी.
कौन कहता है मुसाफिर जख्मी नही होते
रास्ते गवाह हैं कम्बख्त गवाही नही देते..!!