पूछ लो बेशक परिन्दों की हसीं चेहकार से
तुम शफ़क़ की झील हो और शाम का मंज़र हूँ मैं..!!
ए खुदा अगर तेरे पेन की श्याही खत्म है,
तो मेरा लहू लेले, यू कहानिया अधूरी न लिखा कर..!!
तेरी यादों ने मुझे क्या खूब मशरूफ किया है ऐ सनम..
खुद से मुलाकात के लिए भी वक़्त मुकर्रर करना पड़ता है..!!
इश्क का धंधा ही बंद कर दिया साहेब,
मुनाफे में जेब जले और घाटे में दिल..!!
इश्क़ है या कुछ और ये तो पता नहीं ,
पर जो तुमसे है वो किसी और से नही..!!
खुद भी रोता है, मुझे भी रुला के जाता है,
ये बारिश का मौसम, उसकी याद दिला के जाता हैं..!!