उस दिल की बस्ती में आज अजीब सा सन्नाटा हैं ,
जिस में कभी तेरी हर बात पर महफ़िल सज़ा करती थी।
इश्क़ ही ख़ुदा है सुन के थी आरज़ू आई,
ख़ूब तुम ख़ुदा निकले वाक़िये बदल डाले।
हम वही हैं,बस ज़रा ठिकाना बदल लिया है
तेरे दिल से निकलकर अब ख़ुद में रहते हैं
सलीक़ा हो अगर भीगी हुई आँखों को पढने का,
तो फिर बहते हुए आंसू भी अक्सर बात करते हैं।
जान-ए-तन्हा पे गुजर जायें हजारो सदमें,
आँख से अश्क रवाँ हों ये ज़रूरी तो नहीं..!!
वो कहते है इसे हाल-ए-दिल मेरा उन्हें क्या पता,
ये सिर्फ़ एक उनकी आदत नही मेरी ज़िंदगी मेरी इबादत है ये.