तेरी तलब की हद्द ने ऐसा जूनून बख्शा
हम खुद को भूल बेठे तुझे याद करते करते ...
मैंने हँसते हुए गरीब देखे
काफी दौलत थी उसके चहेरे पे
तुम्हारा होना ना होने के जैसा है
तुम्हें खोना ना पाने के जैसा है...
यह तो आप पढ़ते हो इसलिए इनमें जज़्बात आ जाते है..
वरना हमारी शायरी में वो बात कहा जो आपका तारुफ़ कर सके..!
वक़्त रहते लौट आना
कहीं ऐसा न हो कि
वक़्त तो रहे हम न रहे।
जिस चीज पे तू हाथ रखे वो चीज तेरी हो,
और जिस से तू प्यार करे, वो तक़दीर मेरी हो.