मैनें सुना था, जो है तुम्हारा, वो गर जाए, तो
पास तुम्हारे, हर हाल में, लौट के ज़रूर आएगा,
बस इक इसी यकीं पे, आज तुम्हारे जाने पर
रुक जाने की, न मैं ज़िद्द, न ही इल्तिजा करूँगा
- अजय दत्ता
फ़र्ज़ था जो मेरा निभा दिया मैंने,
उसने माँगा जो वो सब दे दिया मैंने,
वो सुनके गैरों की बातें बेवफ़ा हो गयी,
समझ के ख्वाब उसको आखिर भुला दिया मैंने
कोई रास्ता नही दुआ के सिवा,
कोई सुनता नही खुदा के सिवा,
मैने भी ज़िंदगी को करीब से देखा है मेरे दोस्त,
मुस्किल मे कोई साथ नही देता आँसू के सिवा
मेरी इन साँसों के आने-जाने को भी
अब से तुम मेरा इज़हार-ए-इश़्क ही कहना,
मैं नहीं चाहता की अब एक पल भी
मेरी ज़िन्दगी का, फ़ुज़ूल, बे-मा'नी कहा जाए
- अजय दत्ता
मरहम चाहा तो दर्द साबित हुए
इश्क़ में वो खुदगर्ज साबित हुए_
जो है जहां का
वहीं पे वो शाद रहेगा,
हो काँटों में क्यूँ न बे-शक
फूल तो वहीं पे आबाद रहेगा
- अजय दत्ता