मेरी यादें मेरा चेहरा मेरी बातें रुलायेंगी,
हिज़्र के दौर में, गुज़री मुलाकातें रुलायेंगी,
दिन तो चलो तुम काट भी लोगे फसानों में,
जहाँ तन्हा रहोगे तुम, तुम्हें रातें रुलायेंगी।
बेबसी ही इश्क़ का दस्तूर है,
चाहने वाला यहाँ मजबूर है,
उस के हाथों गर शिकस्त-ए-दिल मिले
हम को ऐसी हार भी मंज़ूर है..!!
वफ़ा का दरिया कभी रुकता नही,
इश्क़ में प्रेमी कभी झुकता नही,
खामोश हैं हम किसी के खुशी के लिए
ना सोचो के हमारा दिल दुःखता नहीं..!!
उसकी पलकों से आँसू को चुरा रहे थे हम,
उसके ग़मोको हंसींसे सजा रहे थे हम,
जलाया उसी दिए ने मेरा हाथ,
जिसकी लो को हवासे बचा रहे थे हम..!!
देख कर मेरा नसीब मेरी तक़दीर रोने लगी,
लहू के अल्फाज़ देख कर तहरीर रोने लगी,
हिज्र में दीवाने की हालत कुछ ऐसी हुई,
सूरत को देख कर खुद तस्वीर रोने लगी..!!
अजीब था उनका अलविदा कहना,
सुना कुछ नहीं और कहा भी कुछ नहीं,
बर्बाद हुवे उनकी मोहब्बत में,
की लुटा कुछ नहीं और बचा भी कुछ नहीँ..!!