रोक दो मेरे जनाज़े को ज़ालिमों,
मुझ में जान आ गयी है,
पीछे मूड के देखो कमीनो
दारू की दुकान आ गयी है…
पी के रात को हम उनको भूलने लगे,
शराब में ग़म को मिलने लगे,
दारू भी बेवफा निकली यारों,
नशे में तो वो और भी याद आने लगे.
मदहोश हम हरदम रहा करते हैं,
और इल्ज़ाम शराब को दिया करते हैं,
कसूर शराब का नही उनका है यारों,
जिनका चेहरा हम हर जाम में तलाश किया करते हैं.
रात चुप है मगर चाँद खामोश नही,
कैसे कहूँ आज फिर होश नही,
इस तरह डूबा हूँ तेरी मोहब्बत की गहराई में,
हाथ में जाम है और पीना का होश नही.
आशिकों को मोहब्बत के अलावा अगर कुछ काम होता,
तो मैखने जाके हर रोज़ यूँ बदनाम ना होता,
मिल जाती चाहने वाली उससे भी कहीं राह में कोई,
अगर कदमों में नशा और हाथ में जाम ना होता.
इतनी पीता हूँ कि मदहोश रहता हूँ,
सब कुछ समझता हूँ पर खामोश रहता हूँ,
जो लोग करते हैं मुझे गिराने की कोशिश,
मैं अक्सर उन्ही के साथ रहता हूँ..!!