क्या ज़रूरत थी हमे महफ़िल में बुलाने की,
जब करना ही था दूर तो अपना न कहते।
हुए दूर तुमसे तो किसके करीब होंगे हम।
खो दिया गर तुमको तो सबसे गरीब होंगे हम।
"साहित्य" इंदौर
क्या ज़रूरत थी हमे महफ़िल में बुलाने की,
जब करना ही था दूर तो अपना न कहते।
"साहित्य" इंदौर
बेपनाह मुहब्बत की कसम मत खाओ,
हमने कई कसमे यूँ ही टूटते हुए देखी है।
"साहित्य" इंदौर
प्रेम...
प्रेम कभी भी, पूराना नही होता।
प्रेम जैसा कोई , खजाना नही होता।
प्रेम रखता है जवाँ दिलों को हमेशा,
प्रेम में उम्र जैसा, पैमाना नही होता।।
"साहित्य" इंदौर
क्या ज़रूरत थी हमे महफ़िल में बुलाने की,
जब करना ही था दूर तो अपना न कहते।
महफ़िल में आज उनकी हम बदनाम हो गए।
पहले थे बेशकीमती........ अब आम हो गए।
"साहित्य" इंदौर